ये सौभाग्य ही है कि मैं उस भूमि से हूँ। जँहा संत श्री रसरंग दास जी महाराज अवतरित हुए है । पूज्य श्री का अंदाज बड़ा अनूठा और निराला है मेरे लिए ये सुखद है कि महाराज श्री के जन्म से लेकर उनके संत बनने तक हर पड़ाव को मैने देखा है। अपनी मस्ती और आनंद में रहने वाले रसरंग दास महाराज का बचपन का नाम चंचल है। महाराज श्री का स्वभाव भी एकदम नाम के अनुरूप था । महाराज श्री के पिता आयुर्वेदिक चिकत्सिक हैं। महाराज श्री के ऊपर से उनकी माँ का साया बचपन मे ही उठ गया था। भाई पढ़ाई के लिए अलीगढ़ रहते थे। और महाराज जी गांव में रहकर ही पढ़ाई कर रहे थे। महाराज श्री का स्वभाव बचपन से ही जोड़ने वाला रहा है। और अपने स्वभाव के अनुरूप महाराज जी के आसपास पास हमेशा उनके हमउम्र बालको का जमावड़ा बना रहता था। यू कहे कि गांव के बंच्चो की एक टोली महाराज जी ने बना रखी थी। जो दिन रात महाराज श्री के साथ ही रहती। पौ फटते ही इनका सूरज महाराज श्री के घर पर ही उगता था। और चंद्रमा की रोशनी जब गांव में बिखरती तब ये बालक महाराज श्री का घर छोड़कर अपने घरों की तरफ आते। ये टोली दिन भर गांव में हुड़दंग मचाती थी। सुबह की शुरआत शैतानियों से होती तो दोपहर खेल पर आकर खत्म होती। भोजन बनाने का काम महाराज श्री के पिताजी के जिम्मे था । घर मे थे तो कुल जमा दो लोग लेकिन भोजन बनता 10 लोगो का क्योकि टोली में शामिल बालक अपने घर तो जाते न थे तो चाय पानी और भोजन सब महाराज श्री ही कराते। महाराज श्री की हरि स्मरण की आदत बचपन से रही है। महाराज श्री नियमित रूप से भजन कीर्तन किया करते थे। हर शाम को हारमोनियम पर भजन के साथ गांव में आध्यात्मिक माहौल हो जाता था। आवाज बहुत सुरीली पाई है महाराज जी ने, सो कई बार तो रात भर उनके भजन होते रहते थे पौ फटती तब जाकर भजन का समापन होता। आल इंडिया रेडियो पर भी महाराज श्री के भजन कार्यक्रम हुए। राठौर कैसेट्स के लिए भी महाराज जी ने कई भजन रिकोर्ड कराए है। 8 वी तक पढ़ाई तो गांव में हो गयी आगे की पढ़ाई के लिए महाराज श्री गुरुकुल संस्कृत विद्यालय गए। वँहा से 12 वी की परीक्षा दी। इसके बाद संस्कृत के शिक्षक के रुप मै महाराज श्री ने छर्रा के एक विद्यालय में अपनी सेवाएं भी दी। इन सबके साथ महाराज श्री का संगीत का क्रम भी लगातार बना रहा। आध्यात्मिक रुझान महाराज श्री में बचपन से ही था। तो रामचरितमानस का पाठ जँहा और जब मौका मिलता कर लिया करते थे। ईश्वर के प्रति श्रद्धा और भक्ति के दौर में महाराज श्री ने वर्ष 2002 में प्रवेश किया और यँहा से जो बदलाव आया वो अपने आप में दिव्य और अप्रतिम था। प्रभु से साक्षात्कार के बाद महाराज श्री सत्य की राह पर चल पड़े। बालक चंचल अब अथाह ज्ञान का सागर रसरंगदास बन गया था। पिता भाई पूरा परिवार गांव सब पीछे छूट गया। रामायण कंठस्थ थी गीता का ज्ञान जुबां पर था। मतलब सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान का असीम भंडार उनके पास था। महाराज श्री को बयां कर सकू इतना ज्ञान मेरे भीतर नही है। मैं बस जितना देख सकता हूं जितना भी अंश में समझ सकता हूं। मैं बस उसे अपने शब्दो में लिखने की कोशिश कर रहा हूं। तब से लेकर अब तक लगभग दो दशक बीत गए है। महाराज श्री का कंठ और उससे गाए भजन आपको किसी अन्य दुनिया में ले जाते है। उनकी वाणी आपको खींच लेती है। महाराज श्री कोई चमत्कार कोई जादू की बात नही करते बल्कि वो तो परम पिता परमेश्वर के प्रति समर्पण भाव रखने उनके बताए रास्ते पर चलने कर्मठ बनकर उसके नतीजे को प्रभु पर छोड़ देने की सीख देते है। अलीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश तक उनके साधकों की बड़ी संख्या उनके जगत कल्याण के संकल्प का परिणाम है । महाराज श्री हमेशा दूसरों की भलाई में लीन रहते है। महाराज श्री का आश्रम अलीगढ़ जिले गांव के कसेर में है। आश्रम छोटा है जिसमे सालो पुराना एक पीपल का पेड़, हनुमान मंदिर और दुर्गा माता का मंदिर है। महाराज श्री आश्रम के कमरों में कभी नही रहते बल्कि उन्होंने आश्रम के बाहर एक कुटिया बना रखी है। महाराज जी हमेशा सबका मंगल करते है इसलिए उनके आश्रम का नाम मंगलम धाम हो गया है । मंगलम धाम के अलावा महराज श्री का अलीगढ़ जिले के छर्रा में रामेश्वर धाम आश्रम भी है। जहा इन दिनों में वो भजन कीर्तन में लगे रहते है। यहां भी आश्रम से इतर महाराज श्री ने एक कुटिया बनवा रखी है और महराज श्री यही निवास करते है। महाराज सरल सहज और सादगी भरे है। महिला और पुरुषों की बराबर की अवधारणा को अपनी बातों से मजबूती देने के साथ महाराज जी महिला अधिकारों के हिमायती हैं। महाराज जी किताबी ज्ञान को व्यवहारिक कसौटी पर तोलकर ही अपनी बात कहते है। उनका मानना है कोशिश करो सत्य बोले और प्रिय बोलो , अहंकार कब आप पर सवार हो जाये पता नही चलता सो इससे बचने के लिए एकदम अलर्ट मोड़ में रहो। रामायण गीता का पठन-पाठन, चिंतन-मनन करते रहो । जीवन मे समय समय पर मौन व्रत करो। इस मौन में उस परम तत्व की स्मृति बनी रहे, इसका निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए। शुभ का संग यानी सत्संग करो। मतलब जँहा जिस चीज से प्रेरणा मिले समझ लो वो सत्संग है।
महाराज श्री को बयां कर सकू इतना ज्ञान मेरे भीतर नही है। मैं बस जितना देख सकता हूं जितना भी अंश में समझ सकता हूं। मैं बस उसे अपने शब्दो में लिखने की कोशिश कर रहा हूं। तब से लेकर अब तक लगभग दो दशक बीत गए है। महाराज श्री का कंठ और उससे गाए भजन आपको किसी अन्य दुनिया में ले जाते है। उनकी वाणी आपको खींच लेती है। महाराज श्री कोई चमत्कार कोई जादू की बात नही करते बल्कि वो तो परम पिता परमेश्वर के प्रति समर्पण भाव रखने उनके बताए रास्ते पर चलने कर्मठ बनकर उसके नतीजे को प्रभु पर छोड़ देने की सीख देते है। अलीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश तक उनके साधकों की बड़ी संख्या उनके जगत कल्याण के संकल्प का परिणाम है । महाराज श्री हमेशा दूसरों की भलाई में लीन रहते है। महाराज श्री का आश्रम अलीगढ़ जिले गांव के कसेर में है। आश्रम छोटा है जिसमे सालो पुराना एक पीपल का पेड़, हनुमान मंदिर और दुर्गा माता का मंदिर है। महाराज श्री आश्रम के कमरों में कभी नही रहते बल्कि उन्होंने आश्रम के बाहर एक कुटिया बना रखी है। महाराज जी हमेशा सबका मंगल करते है इसलिए उनके आश्रम का नाम मंगलम धाम हो गया है । मंगलम धाम के अलावा महराज श्री का अलीगढ़ जिले के छर्रा में रामेश्वर धाम आश्रम भी है। जहा इन दिनों में वो भजन कीर्तन में लगे रहते है। यहां भी आश्रम से इतर महाराज श्री ने एक कुटिया बनवा रखी है और महराज श्री यही निवास करते है। महाराज सरल सहज और सादगी भरे है। महिला और पुरुषों की बराबर की अवधारणा को अपनी बातों से मजबूती देने के साथ महाराज जी महिला अधिकारों के हिमायती हैं। महाराज जी किताबी ज्ञान को व्यवहारिक कसौटी पर तोलकर ही अपनी बात कहते है। उनका मानना है कोशिश करो सत्य बोले और प्रिय बोलो , अहंकार कब आप पर सवार हो जाये पता नही चलता सो इससे बचने के लिए एकदम अलर्ट मोड़ में रहो। रामायण गीता का पठन-पाठन, चिंतन-मनन करते रहो । जीवन मे समय समय पर मौन व्रत करो। इस मौन में उस परम तत्व की स्मृति बनी रहे, इसका निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए। शुभ का संग यानी सत्संग करो। मतलब जँहा जिस चीज से प्रेरणा मिले समझ लो वो सत्संग है।