इंसान के जीवन का लक्ष्य है अपने मन, वचन और शरीर से दूसरो की मदद करना। और जो लोग दूसरों की मदद करते हैं उनमें मानसिक शांति और आनंद का अनुभव होता है उनमें तनाव की समस्या नहीं होती। ऐसे इंसान आत्मा से खुद का जुड़ाव अनुभव करते हैं परसेवा में लगे इंसानों जीवन संतोषपूर्ण होता है। मानव जीवन का उद्देश्य जन्मों-जन्म के कर्म बंधन को तोड़ना और संपूर्ण मुक्ति को प्राप्त करना है। इसके लिए पहले आत्म की प्राप्ति करना जरूरी है। और ये रास्ता परोपकार से होकर गुजरता है।
महाराज श्री मानते है कि आपके आस पास जो मिले उसे प्रसन्नता दे उसे सुख पहुंचाएं जीवन का मुख्य हेतु यही था कि जो भी उनसे मिले उसे सुख दें। महाराज श्री ने पर सेवा और अपने आसपास के लोगो समाज से जुड़े सभी के हित, उनकी मदद करके अपने जीवन का लक्ष्य कैसे हासिल करें, इस बारे में कई रास्ते बताए हैं । सुख, समृद्धि और शांति से जीवन जीने के लिए सच्चरित्र होना सदाचारी होना पहली शर्त है। और अच्छे विचारों के बिना ये संभव नहीं है। हमे इंसान का जीवन मिला है तो हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम इसे सार्थक बनाएं अपने उद्देश्य को हासिल करें।
लोकमंगल की कामना ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। केवल अपने बारे में सोचना अपने हित अपने सुख की चाह हमें इंसान होने के अर्थ से दूर कर देती है । इंसान होने के नाते जब तक हम एक दूसरे के दु:ख-दर्द में साथ नहीं निभाएंगे तब तक इस जीवन सार्थक नहीं हो पाएगा। परिवार भी समाज का ही हिस्सा है वो भी समाज की एक इकाई है लेकिन हमे इतने तक ही सीमित नही रहना है। केवल परिवार के बारे में उसके सुख और हितों के बारे में सोचना सामाजिकता का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। हमारे जीवन का उद्देश्य तो तभी पूरा हो पाएगा जब हम समाज को भी परिवार मानें। मानवता में ही सज्जनता निहित है जो सदाचार का पहला लक्षण है। मनुष्य की यही एक शाश्वत पूंजी है। इंसान मेटेरिलिस्टिक चीजों के वशीभूत होकर जीवन की जरूरतों को अनावश्यक बढ़ाता रहता है और इसके लिए सभी से भलाई-बुराई लेने को भी तैयार रहता है और इस चक्कर में इंसान अपनी शाश्वत पूंजी को स्वार्थवश नजरअंदाज करता रहता है।
जीवन का वास्तविक सुख-शांति इसी में है। जीवन में नैतिकता की अनदेखी करने से आत्मबल कमजोर होता है। इंसान के जीवन में जितने भी आदर्श उपस्थित करने वाले सद्गुण हैं वे सभी नैतिकता से ही फलते फूलते हैं। इंसान को उसके आदर्श ही अमरता दिलाते हैं। आदर्शो की जगह भौतिक चीजों से ऊपर है। मानव मूल्यों की तुलना कभी भौतिकवादी चीजों से नहीं की जा सकती। अभिमान सदैव आपके आदर्शो और इंसानी मूल्यों को खत्म कर देता है। इसलिए इससे सदैव बचने की जरूरत है।