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संतुलित जीवन

हम जिंदगी से जितना लेते हैं जिंदगी उसे अधिक हमसे लेती है। हम अपने हर कदम को बहुत सोच-समझकर रखते हैं लेकिन कभी यह नहीं समझ पाते कि कुछ बातें इंसान के दायरे से बाहर हैं। हर रोज हमारा सामना अलग अलग परिस्थितियों से होता है। इनमे से कुछ प्रतिकूल भी होती है इन परिस्थितियों से निपटने की और इन्हें हरा कर आगे बढ़ने की शक्ति हमें हमारे परिवार, दोस्तों और अपनी अंतरात्मा से मिलती है। अगर आप जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं के बीच संतुलन कायम करने में कामयाब हो जाते हैं तब आप किसी भी बड़े लक्ष्य तक पहुंचने का साहस कर पाएंगे। यह संतुलन केवल आपके कामकाजी जीवन के लिए ही नहीं बल्कि आपके निजी जीवन के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

यूं तो संतुलन शब्द का जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है लेकिन इसका हेल्थ के लिए जो महत्त्व है वो अलग ही है। इंसान जब अपना संतुलन खो बैठता है, तब उसकी जिन्दगी मुश्किल हो जाती है। जिंदगी को अगर जिंदगी की तरह जीना है तो संतुलन को दोस्त बनाना पड़ेगा। संतुलन आपका हर पग और हर पल पर सहयोग करेगा। इंसान को हेल्थी रहने के लिए संतुलन का हाथ पकड़कर चलना पड़ता है।

रोजमर्रा के जीवन मे संतुलन आधुनिकरण का दौर है जिसमे पैसा केंद्र में है। हर इंसान पैसे के पीछे दौड़ रहा है। रुपए पैसा कमाना कोई बुरी बात भी नहीं है लेकिन स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर पैसा कमाना अच्छा नही है। हम पैसा भी तो शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही कमाते हैं। इसलिए पैसा कमाने के लिए हमें इतना ज्यादा फिजिकल और मेंटली काम करने की जरूरत नहीं है कि हम अपने अच्छे खासे शरीर से ही हाथ धो बैठें। जिंदगी का उद्देश्य तो सुन्दरतम ढंग से जीना है। जीवन को सुंदरतम ढंग से जीने के लिए हमें अपने डेली रूटीन में संतुलन बिठाकर चलना पड़ेगा। लेकिन आज इंसान पैसे के पीछे इतना पागल हो गया है कि उसके पास जरूरी डेली रूटीन के लिए समय ही नहीं है। इंसान पैसा कमाने के लिए ही पूरा टाइम खर्च करना चाहता है। उसके पास सुबह टहलने के लिए, व्यायाम करने के लिए, प्रार्थना करने के लिए, नाश्ता भोजन करने के लिए टाइम ही नहीं है। इन सभी कामों के लिए तो वह नाममात्र का समय देता है। नतीजा पैसे के चक्कर में उसकी डेली रूटीन और काम काज असंतुलित और अनियमित हो जाते है जिसका नतीजा इंसान के अस्वस्थ होने के रूप में सामने आता है इसलिए हमे लाइफ में बैलेंस बिठाते हुए सभी जरूरी कामों को करना चाहिए।

संतुलित भोजन

भोजन शारीरिक स्वास्थ्य का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है। यूं तो हर इंसान भोजन करता है लेकिन उल्टा-सीधा भोजन कर लेना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी नहीं है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें अपनी उम्र, अपने वजन और अपनी क्षमता के हिसाब से संतुलित भोजन लेना चाहिए। लेकिन इंसान का अपने मन उस पर हावी होता है। उसकी जीभ बहुत ही चटपटी हो गई है। उसे मालूम है की है कि ये चीज उसके स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं किन्तु फिर भी उसकी चटपटी जीभ उसे खाने को विवश कर देती है। यह विवशता ही तो असंतुलन का नाम है। जीभ पर अधिकार और समय पर संतुलित भोजन करना ही हमारे अच्छे स्वास्थ्य की कसौटी है।

मानसिक संतुलन

हमारी मानसिकता का भी हमारे स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। हमारी मानसिकता, हमारी सोच की द्योतक है। हमारी सोच हमारी एक्टिविटी की द्योतक है और हमारी एक्टिविटी हमारे स्वास्थ्य के द्योतक हैं इसलिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मानसिकता का होना बहुत जरूरी है। स्वस्थ मानसिकता से आशय अच्छे विचारों से है। हमारी मानसिकता का निर्माण हमारे परिवेश से होता है, हमारे रहन-सहन से होता है, हमारी संगति से होता है। मानसिकता के निर्माण की भी एक निश्चित आयु सीमा होती है। शिक्षा हासिल करने को हम मानसिकता का निर्माण काल कह सकते हैं। यह समय शिक्षार्थी की शिक्षा पर डिपेंड करती है। वैसे इस समय को हम लगभग 4-5 वर्ष की उम्र से लेकर 20-22 वर्ष की उम्र तक मान सकते हैं। इसी समय में हमारी मानसिकता का निर्माण हो जाता है जिसके आधार पर ही हम जीवन पर्यन्त सोचते हैं और व्यवहार करते हैं। अगर इस समय में हमारी मानसिकता का निर्माण गलत हो जाता है तो हम गलत एक्टिविटी करने लगते हैं और नतीजा हम अस्वस्थता के शिकार हो जाते हैं। अगर इस समय सीमा में हमारी मानसिकता स्वस्थ बन जाती है तो हम स्वस्थ एक्टिविटी करते हैं और जीवन-पर्यन्त स्वस्थ रहते हैं। इसलिए स्वस्थ रहने के लिए संतुलित या स्वस्थ मानसिकता का होना बहुत जरूरी है।
संतुलन का स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। जैसे-जैसे हमारा संतुलन उगमगाने लगता है, वैसे-वैसे हमारा स्वास्थ्य भी डगमगाने लगता है। इसलिए स्वस्थ रहने के लिए सभी तरह से संतुलित रहना जरूरी है।