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श्री रसरंग दास महाराज

संत श्री रसरंग दास जी आध्यात्मिक गुरु है। जो सत्य प्रेम और करुणा के मार्ग के जरिए मानव जीवन में आनंद और प्रसन्नता लाने के अभियान पर है। इसके साथ ही महाराज श्री वैदिक परंपराएं और सनातन धर्म शास्त्रों के बारे में लोगो को जागरूक कर रहे हैं। महाराज श्री अपने भजन सत्संग और प्रवचनों के जरिए शिव, राम और कृष्ण जैसे नायकों को रोजमर्रा की जिंदगी से जोड़कर, धर्म के बजाय आध्यात्मिकता को आत्मसात करने की बात कहते है। महाराज श्री के अनुसार सनातन धर्म के पांच प्रमुख तत्व हैं भगवान गणेश , भगवान राम , भगवान कृष्ण , भगवान शिव और देवी दुर्गा। इन्ही में सभी सभी देवी देवता निहित हैं। और ये सभी दर्शन वेदों , उपनिषदों , पुराणों , भगवद गीता और रामायण में समाहित हैं। महाराज श्री कहते हैं कि सनातन धर्म में सत्य के सिंबल के रूप में प्रभु श्री राम, प्रेम के आइकॉन के रूप में भगवान श्री कृष्ण और शिव करुणा के रूप हैं। महाराज श्री के सत्संग प्रवचन आत्मशुद्धि भी करते है। और चित्त को संस्कारित भी। महाराज श्री अपने प्रवचन में लोकमंगलकारी किरदारों पर खासा जोर देते हैं। श्री राम चरित मानस हो श्रीमद भगवद कथा हो या अन्य पौराणिक ग्रंथ अपने कथानक के साथ धर्म, दर्शन एवं भक्ति की ओर अग्रसर होते हुए शील, मर्यादा, आदर्श और शौर्य का संदेश देते है। महाराज श्री रामचरित मानस में विश्वामित्र को चिंतक और दूर दृष्टा, प्रभु श्री राम को युवाओं के आइकॉन के रूप में पेश करते है। बालकांड के राम जिज्ञासु राम , मां जानकी के स्वयंवर में राम बुद्धिमान राम के रूप में हमारे सामने है। अरण्य काण्ड के राम समाज के दबे कुचले और पिछड़े तबके को साथ लेकर चलने वाले राम हैं। और राम के इन रूपों को महाराज श्री अपने प्रवचनों में सबके सामने लेकर आते है। कृष्ण एक सखा के रूप में एक रणनीतिकार के रूप में धैर्य को एक निश्चित सीमा तक धारण करने वाले व्यक्तित्व के रूप में युवाओं के प्रेरणाश्रोत है। महाराज श्री अपने सत्संग प्रवचनों के जरिए भारतीय समाज को संगठित करने में जुटे हैं। महाराज श्री युवाओं से अपील करते है कि उनमें भी युवा राम जैसी नम्रता, सत्य का आग्रह, दृष्टि का सौंदर्य, शील, सामाजिकता, पारिवारिकता शालीनता खुद में लानी चाहिए कृष्ण जैसी मैनेजमेंट क्षमता उनके जैसा मित्र, उनके जैसी सूझबूझ ,उनकी जैसी रणनीति को अपने अंदर जगाना चाहिए।

आज समाज में विखराव, भौतिक चीजों के लिए संघर्ष, आक्रोश, असंतोष, मानसिक अवसाद और अहंकार व्याप्त हैं। ऐसे में महाराज श्री अपने प्रवचनों में भरत को सामने लाते है। कैसे भरत अयोध्या के राजसिंहासन को श्री राम को दे देते हैं। और फिर कैसे श्रीराम उसे भरत को लौटा देते हैं। भरत अहंकार, तृष्णा से मुक्त युवा हैं। राजमद तो अहंकारी को होता है। अहंकार तो रावण में है वो राजमद में है। राजा जनक चिंतकों के विमर्श पर नम्रता और सेवा भाव से जनतांत्रिक सत्ता का संचालन करते हैं। भरत ने अद्वितीय, अनुपम उदाहरण देकर सत्ता का संचालन किया। महाराज श्री अपने प्रवचन के जरिए बताते है कि सत्ता मद तो अकल्याणकारी है। यह भोगने, संग्रह करने उत्पीड़न, उपेक्षा, प्रलोभन और विभाजन की चीज नहीं हैं। भजन सत्संग और प्रवचन कहने, सुनने के अलग अलग हेतु होते हैं। महाराज श्री भी लक्ष्य केंद्रित होकर भजन सत्संग और प्रवचन करते हैं। जीवन के बेहतर प्रबंधन के लिए अत्यंत आवश्यक आध्यात्मिक विकास के साथ विकसित समाज की स्थापना में मानव की भागेदारी पर केंद्रित होकर महाराज श्री जग हित के लक्ष्य पर आगे बढ़ रहे हैं । कथाओं पर केंद्रित उनके प्रवचन भजन और सत्संग का एक मात्र प्रयोजन होता है मानव समाज का हित संसार के समस्त प्राणियों का हित।उनके प्रवचन समाज में शिक्षा और अध्यात्म के बीच एक पुल का काम करते है। महाराज श्री का मत है कि रामचरितमानस और श्रीमद भगवद कथा प्रत्येक जीव के कल्याण और विकास के लिए है।

राशिफल भविष्यवाणियां

ज्योतिष एक शुद्ध विज्ञान है। अगर सही गणित लगाया जाए तो किसी भी जातक को बताया जा सकता है कि उनके आने वाले जीवन का क्या लेखा जोखा है। शंका का भाव मानव मन के साथ हमेशा लगा है, भविष्य जानने के लिए वे हमेशा उत्सुक है। ज्योतिष विज्ञान द्वारा, भूत में हुई, और भविष्य में होने वाली घटनाओं के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

हमारी सेवाएँ

श्रीमद् भगवद कथा

एक ऐसा पौराणिक ग्रंथ जिसका श्रद्धापूर्वक पठन और श्रवण करने से भोग और मोक्ष दोनों सुलभ हो जाते हैं। मन की शुद्धि के लिए इससे बड़ा कोई साधन नहीं है। इसके श्रवण मात्र से हरि हृदय में आ विराजते हैं।

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रुद्राभिषेक

रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है।

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जन्म कुंडली

जन्म कुंडली या जन्मपत्री जैसा कि हम इसे कई नामों से जानते हैं, किसी व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में विद्यमान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का मानचित्र होती है।

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ध्यान शिविर

खुद को जानने की यात्रा तय करनी है तो तो ध्यान ही उसका साधन है। संत श्री रसरंग दास जी महाराज ध्यान शिविर के माध्यम से हमे मानसिक यात्रा के उस पड़ाव पर ले जाते है जहां से जीवन से संतुलन सधने लगता है।

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